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100+GULZAR SHAYARI | gulzar shayari in hindi

Gulzar Shayari
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गुलज़ार उर्फ़ सम्पूर्ण सिंह कालरा का जन्म दीना, झेलम जिले, ब्रिटिश भारत में 18 अगस्त 1934 को एक खत्री-सिख परिवार में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। इनके माता-पिता का नाम सुजन कौर और माखन सिंह कालरा है। उन्होंने स्कूल में अनुवाद में टैगोर की रचनाओं को पढ़ा था, जिसे उन्होंने अपने जीवन के कई मोड़ में से एक बताया। विभाजन (बंटवारे) के परिणामस्वरूप उनका परिवार बिखर गया था, और उन्हें अपने परिवार का समर्थन करने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और फिर मुंबई आ बसे। उन्होंने मुंबई में कई तरह की पार्ट-टाइम नौकरियां की थी। एक लेखक के रूप में शुरुआत करने के लिए उनके पिता ने हमेशा उनका पीछा किया था। उन्होंने कलम का नाम गुलज़ार दीनवी अपनाया, जिसे बाद में उन्होंने बदलकर केवल गुलज़ार कर दिया।  उन्होंने 1963 की फ़िल्म बंदिनी में प्रसिद्ध संगीत निर्देशक एसडी बर्मन के साथ गीतकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की और इसके बाद आरडी बर्मन, सलिल चौधरी, विशाल भारद्वाज और एआर रहमान के साथ सहयोग किया। कहानियाँ और शायरी लिखना, गुलज़ार का जुनून। 2004 में, उन्हें भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार, पद्म भूषण, साथ ही साहित्य अकादमी पुरस्कार और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, भारत का सर्वोच्च भारतीय सिनेमा पुरस्कार मिला। उन्होंने कई भारतीय राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 21 फिल्मफेयर पुरस्कार, एक अकादमी पुरस्कार और एक ग्रेमी पुरस्कार भी प्राप्त किया है। गुलज़ार साहब ने 21 फिल्मों का निर्देशन भी किया है, जिसमें से एक माचिस नाम की प्रख्यात फिल्म भी थी।

Gulzar Ki Shayari

हम समझदार भी इतने हैं के
उनका झूठ पकड़ लेते हैं
और उनके दीवाने भी इतने के फिर भी 
यकीन कर लेते है

Ham samajhdar bhi itne Hain Ki 
Unka Jhooth pakad lete hain
Aur unke Deewane bhi itne Hain Ki fir bhi
Yakin kar lete hain

दौलत नहीं शोहरत नहीं,न वाह चाहिए 
“कैसे हो?” बस दो लफ़्जों की परवाह चाहिए

Daulat nahi Shohrat nahin na vaah chahie
“kaise ho?” bss Do Lafzon Ki Parwah chahiye

कभी जिंदगी एक पल में गुजर जाती है
कभी जिंदगी का एक पल नहीं गुजरता

Kabhi jindagi ek pal me gujar jaati hai 
Kabhi jindagi ka ek pal nhi gujarta

जब से तुम्हारे नाम की मिसरी होंठ से लगाई है
मीठा सा गम  मीठी सी तन्हाई है।

Jab Se Tumhare Naam Ki Misri Honth se lagai  hai
Meetha Sa  Gam Meethi Si Tanhai hhaie them feel.”

मेरी कोई खता तो साबित कर
जो बुरा हूं तो बुरा साबित कर
तुम्हें चाहा है कितना तू क्या जाने
चल मैं बेवफा ही सही
तू अपनी वफ़ा साबित कर।
Meri koi Khata to sabit kar

Jo Bura Hun To Bura sabit kar 
Tumhen Chaha Hai Kitna tu kya Jaane
Chal Main Bewafa Hi Sahi 
Tu Apni Wafa sabit Kar

पलक से पानी गिरा है, तो उसको गिरने दो,
कोई पुरानी तमन्ना, पिंघल रही होगी।
Palak se Pani Gira Hai To usko Girne do

koi purani Tamanna pighal Rahi Hogi

आदतन तुम ने कर दिए वादे,
आदतन हमने ऐतबार किया।
तेरी राहो में बारहा रुक कर,
हम ने अपना ही इंतज़ार किया।।
अब ना मांगेंगे जिंदगी या रब,
ये गुनाह हमने एक बार किया।।।

Aadatan tum ne kar Diye waade
Humne Aitbaar Kiya
Teri Rahon Mein barha ruk kar
Humne apna hi Intezar Kiya
Ab Na mangenge Jindagi ya rab
Yeh Gunah Humne Ek Bar Kiya

मैंने मौत को देखा तो नहीं, 
पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी। 
कमबख्त जो भी उससे मिलता हैं,
जीना ही छोड़ देता हैं।।

Maine Maut Ko Dekha To Nahin
Par Shayad vo bahut Khubsurat Hogi Kambakht jo bhi usse Milta Hai 
Jina Hi Chhod deta hain

टूट जाना चाहता हूँ, बिखर जाना चाहता हूँ, 
में फिर से निखर जाना चाहता हूँ। 
मानता हूँ मुश्किल हैं,
लेकिन में गुलज़ार होना चाहता हूँ।।
Tut Jana chahta hun bikhar Jana chahta hun 

main fir se nikhar chahta hun
Manta hun Mushkil Hai 
Lekin Main guljar Hona chahta hun

सामने आए मेरे, देखा मुझे, बात भी की,
मुस्कुराए भी, पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर, 
कल का अख़बार था, बस देख लिया, रख भी दिया।।
Samne Aaye Mere Dekha mujhe baat bhi ki 

muskurae bhi purani kisi pahchan ke khaatir
Kal ka Akhbar tha bss dekh liya rakh bhi Diya

दर्द हल्का है साँस भारी है,
जिए जाने की रस्म जारी है।
Dard Halka Hai Saans Bhari Hai 

Jiye Jaane Ki Rachna Jari hai

देर से गूंजते हैं सन्नाटे,  
जैसे हम को पुकारता है कोई।
हवा गुज़र गयी पत्ते थे कुछ हिले भी नहीं, 
वो मेरे शहर में आये भी और मिले भी नहीं।।

बीच आसमां में था बात करते- करते ही,
चांद इस तरह बुझा जैसे फूंक से दिया,
देखो तुम इतनी लम्बी सांस मत लिया करो।।

वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी,
हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते..
वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी

यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता

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